विद्यालय का परिचय
"हमारा विद्यालय"
विद्यालय का नाम :- किसान इण्टर कॉलेज गोरा-तिलफरा (सहारनपुर )।
यह विद्यालय जनपद सहारनपुर के राम पुरम निहारान तहसील के अन्तर्गत नानौता ब्लॉक से 8 कि०मी० पूर्व दिशा में गंगोह- देव बन्द हरिद्वार मार्ग से कल्लरपुर नहर के उत्तरी भागमोरा-तिलफरा ग्राम के मध्य स्थित है।
हमारा सर्वांगीण विकास प्राचीनकाल में सन्तो तथा महापुरुषों के द्वारा किया गया "नहिज्ञानेन सद्वर्ष पवित्र मिहविद्यते" ज्ञान के समान इस संसार में कुछ भी पवित्र नहीं हैं। इस वेद वाक्य का अनुसरण करते हुये अपने क्षेत्र के बालक/बालिकाओं को उत्तम शिक्षा प्रदानकर उनके उज्जवल भविष्य की कामना से राष्ट्रसेवा का भाव हमारे सम्मानीय संस्थापक स्व० श्री गरमा सिंह जी के हृदय में प्रस्फुटित हुआ। अतः उन्हाने संकल्प लिया कि मैं इस क्षेत्र के असहाय गरीब उपेक्षित प्रतिभाओं के अन्दर निहित ज्ञान राशि को प्रकाशित करुगा।
इस तरह की उत्तम भावना के जागृत होते ही शिक्षा की उभयन का बिगुल बज उठा और वे भावी पीढ़ी की समस्या के प्रति अपने आपको समर्पित कर दिये।
क्षेत्र की देवतुल्य जनता एवं बालक / बालिकाओं में शिक्षा विषयक इस आवश्यकता का बौध किया और इस पावन-यक्ष में अपनी बहुमुल्य आहुति देने के लिये सर्वप्रथम श्री चमेला सिंह जी (कातला) श्री प्रताप गांधीजी (मोरा) श्री बच्चा सिंह (मोरा) श्री नारायण सिंह (मोरा) नम्बरदार श्री नाफा सिंह (मोरा) श्री परमाल सिंह (मोरा) श्री चन्द्रभान सिंह जी (मोरा) श्री चमोल सिंह (बालूमाजरा) श्री महेन्द्र सिह जी (ठसका) श्री कालू सिंह सिंह जी (तिलफरा) सहित भारी संख्या में गणमान्य व्यक्तियों ने तन-मन-धन से अपना बहुमूल्य सहयोग दिया।
श्री चमेला सिंह (अध्यक्ष) श्री प्रताप गांधी जी ने प्रबन्धक पद की बागडोर सम्भाली तथा अन्य व्यक्तियों ने प्रबन्ध समिति के विभिन्न पदों पर रहकर एक सूत्रात्मकता का परिचय दिया। परिणायत सन 1955 मेंग्राममोरा की पक्की चौपाल
में "किसान जूनियर हाईस्कूल मौरा" तिलफरा सहारनपुर के नाम से इस पवित्र ज्ञान मन्दिर का उदघाटन हुआ। धीर स्वभाव व्यवहार कुशल- अनुशासन प्रिय होने के कारण प्रधानाचार्य के रूप में श्री गरजा सिंह जी को जिम्मेदारी प्रदान की गयी है तथा सहायक अध्यापक का कार्यभार श्री जिला सिह जी श्री सीताराम त्यागी श्री काशी रामजी व श्री ओमदत्त जी को दिया गया।
आज जहाँ पर भव्य इण्टर कॉलेज स्थापित है उसी स्थल पर क्षेत्र वासियों के असुक्ष सहयोग के तीन शिक्षण कक्ष सहित प्रधानाचार्य कक्ष कार्यालय आदी का निर्माण करके विद्यालय को स्थानान्तरित कर दिया गया और ये० शिक्षा के पत्रांक 753 दिनांक 05-07-1958 को इसे सर्वप्रथम किसान जूनियर हाईस्कूल मोरा-तिलफरा सहारनपुर के नाम से स्थायी मान्यता प्राप्त हो गयी।
तदनन्तर शिक्षा का यह पावन धाम अपने ज्ञान रूपी प्रकाश में चारो दिवाओं को प्रकाषित करने लगा। क्षेत्र के बालक / बालिकाओं एवं अभिभावकों में शिक्षा के प्रति चेतना जागृत हुई और छात्र संख्या बढ़ने लगी। प्रधानाचार्य जी के साहस कार्य निष्ठा तथा प्रबुध शिक्षकों की कड़ी मेहनत में छात्र-छात्राओं की प्रतिमाओं को विकसित करने में किश्चन मात्र प्रमाद नहीं किया।
स्थानीय शिक्षा श्रेणी बुद्धि जीवियों के द्वारा जनता द्वारा प्रदान किये गये मन से सुन्दर मनोहर विशालतम विद्यालय भवन का निर्माण कराया गया तथा समय-समय पर क्षेत्र वासियों द्वारा अमुल्य सहयोग प्रदान किया गया।
सन 1982 में विद्यालय को हाईस्कूल साहित्यिक वर्गतथा 1985 विज्ञान वर्ग में स्थायी मान्यता मिली। विद्यालय में समाज अच्छे अनुशासन एवं शिक्षा की उच्च गुणवत्ता के कारण क्षेत्र के अन्य विद्यालयों में से श्रेष्ठतम स्थान प्राप्त है। विद्यालय परिवार द्वारा प्रति वर्ष मेघावी छात्र-छात्राओं को सम्मानित किया जाता है।
सन 1978-79 में तत्कालीन जिलाविद्यालय निरीक्षक श्री जे०पी० अग्रवाल जी द्वारा विद्यालय से प्रभावित होकर इण्टर की मान्यता प्रदान करने हेतु संस्तुती प्रदान की ईश्वरीय कुपा से श्री अग्रवाल जी पदोन्नत होकर बोर्ड के मान्यता विभाग में सचिव पद पर आसीन हुये जिसके द्वारा सन 1979-80 में विद्यालय को इण्टर साहित्यिक वर्ग में स्थायी मान्यता की गयी।
संस्थापक का व्यक्तित्व
सम्पूर्ण मानव समाज को एक करने की प्रेरणा हमें श्रेष्ठ पुरुषो से प्राप्त होती है "यधदाचरितदेवोतदतददेवोन्तरोजनाः” इसी गीता वाक्य को सार्थक करने वाले विद्या प्रेमी, कर्मठशील स्व0 श्री गरजा सिंह जी का जन्म 02 जुलाई सन 1929 में सहारनपुर जनपद के छोटे से गांव मोरामें एक लघु किसान परिवार में हुआथा। इनके पिता स्व0 श्री चौहल सिंह एवं माता श्री मति अशरफी देवी ने तथा अन्य दो भाई श्री दल सिंह एवं श्री प्रताप सिंह है तथा वंश परम्परा मे दो सुपुत्र - श्री ब्रजपाल सिंह व डॉ० राजेन्द्र सिंह है।
आपकी प्रारम्भिक शिक्षा गांव पर ही हुई तथा उच्च शिक्षा आगरा नि0वि0 से एम०ए० एल०टी० (ट्रेनिंग ) प्राप्त हुई ।
आपके द्वारा स्थापित इस विद्या मन्दिर से अध्ययन कर हजारो छात्र छात्राए ज्ञान पुण्य के सुगन्ध से दिशाओ को सुगन्धित करते हुए विद्या वंश से बढ़ा रहे है।
आप इस विद्यालय के प्रथ मप्राद्यानाचार्य के रुप में 30 जून सन 1969 तक सेवा प्रदान की थी । 24 नवम्बरसन 2000 में इस नश्वर शरीर को त्याग कर दिये ।
“अजोनित्यः शाष्वतोअमपुराणो न हस्यतेहन्यमाने शरीरे”
परन्तु सूक्ष्म शरीर के रुप में सदैव हम सब के बीच विद्यमान रहेंगे ।